
न आइडिया बचा न ही दिलचस्पी
पैसा कमाने में नए रिकॉर्ड बना रही `धूम-3’ के बारे में आपने शायद ऐसा नहीं सोचा होगा। लेकिन ऐसा सोचना चाहिए, क्योंकि निर्माता और निर्देशक दोनों ने अपनी ओर से यह कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि न अब उनके पास आइडिया बचा है और न दिलचस्पी।
जो लोग हॉलीवुड की फिल्में देखते हैं, वो जानते हैं कि सीरीज की फिल्में किस तरह हर पिछली फिल्मों से टक्कर लेती हैं। 'मिशन इंपॉसिबल', 'डाइ हार्ड', 'टर्मिनेटर', 'फास्ट एंड फ्यूरियस' और 'ट्रांसपोर्टर' जैसी सीरीज के दीवानों से पूछिए कि वे क्यों इन फिल्मों को बार-बार देखते हैं?
इन फिल्मों में चार चीज़ें एक जैसी हैं। पहला यह कि हर फिल्म का एक स्थायी चरित्र होता है और वह फिल्म को अपने दम पर खींचने की ताकत रखता है। दूसरा, हर फिल्म का मिशन, जो आपकी सांसें रोके रखता है। तीसरा, फिल्म का एक्शन और तकनीक और चौथा, फिल्म के हीरो या मुख्य पात्र की कुशाग्रता।
अब `धूम’ को परखें तो यह पहले पैमाने पर थोड़ी अलग है। एसीपी जय दीक्षित (अभिषेक बच्चन) इस फिल्म सीरीज का स्थायी पात्र है। लेकिन `धूम-2’ में ही वह ऐसा पात्र बन गया था जो फिल्म का मुख्य स्तंभ नहीं था। `धूम-2’ का सूत्रधार वह व्यक्ति बन बैठा और विडंबना देखिए कि `धूम-3’ आते-आते तक वह हास्यास्पद पात्र में बदल गया।